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बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि जब भी किसी मंदिर में दर्शन के लिए जाएं तो दर्शन करने के बाद बाहर आकर मंदिर की पेडी या ऑटले पर थोड़ी देर बैठते हैं। ...
Saturday, July 11, 2020
World Population Day 11 July. बढ़ती जनसंख्या देश के लिए बड़ी मुसीबत।
'जय जवान, जय किसान' का नारा देने वाले लाल बहादुर शास्त्री का योगदान।
सोमनाथ मंदिर के उदघाटन के लिए डा. राजेंद्र प्रसाद को बड़ी कीमत चुकानी पड़ी।
आइए जानें, नवाबों का शहर लखनऊ में क्या है खास।
बड़ा इमामबाड़ा लखनऊ में भूलभुलैया नाम से भी मशहूर बड़े इमामबाड़े का निर्माण नवाब आसिफ उद्दौला ने करवाया था। लखनऊ के इस प्रसिद्ध इमामबाड़े का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व है। ये इमामबाड़ा एक नवाब के परोपकारी कदम का प्रतीक है जो अपनी प्रजा के हित को ध्यान में रख कर उठाया गया था। साल 1784 में नवाब ने अकाल राहत परियोजना के अन्तर्गत इसे बनवाया बड़ा इमामबाड़ा लखनऊ की एक ऐतिहासिक धरोहर है। मस्जिद परिसर के आंगन में दो ऊंची मीनारें हैं।इमामबाड़े की इमारत एक विशाल गुम्बदनुमा हॉल की तरह है, जो 50 मीटर लंबा और 15 मीटर ऊंचा है। एक अनुमान के अनुसार इसे बनाने में उस दौर में पांच से दस लाख रुपए का खर्च हुआ था। कहा तो ये भी जाता है कि इस इमारत के पूरा होने के बाद भी नवाब इसकी साज सज्जा पर चार से पांच लाख रुपए सालाना खर्च करते थे। इमामबाड़े के परिसर में एक अस़फी मस्जिद भी है, जहां मुस्लिम समाज के लोग ही जा सकते हैं। मस्जिद के आंगन में दो ऊंची मीनारें हैं।
इमामबाड़े से जुड़ी कहानियां इस इमामबाड़े से कई कहानिया भी जुड़ी हुई हैं। कहते हैं कि इस इमामबाड़े के अंदर अंडरग्राउंड कई रास्ते हैं। इनमें से एक गोमती नदी के तट पर खुलता है तो एक फैजाबाद तक जाता है। वहीं कुछ रास्ते इलाहाबाद और दिल्ली तक भी पहुंचते थे। ये भी कहा गया कि ये रास्ते वाकई अब भी मौजूद है पर दुर्घटनाओं के डर से उन्हें सील कर दिया गया है ताकि कोई उनके भीतर ना जा सके।
मोती महल लखनऊ में गोमती नदी के किनारे पर बना मोती महल। इसकी तीन इमारतें इस महल को खास बनाती हैं। इसे सआदत अली खां ने बनवाया था। मुबारक मंजिल और शाह मंजिल अन्य दो इमारतें हैं। बालकनी से जानवरों की लड़ाई और उड़ते पक्षियों को देखने हेतु नवाबों के लिए इन इमारतों को बनवाया गया था। राणा प्रताप मार्ग पर स्थित मोती महल में मुहब्बत और जंग की कहानी है। इसे यूं ही मोती महल नहीं कहते हैं। दरअसल 18वीं सदी में नवाब सआदत अली खां ने गोमती नदी के दायें किनारे पर एक आलीशान महल बनवाया था। इसके गुंबद की सूरत और चमक मोती जैसी थी इसलिए यह मोती महल कहलाया। इससे जुड़ी एक और कहानी भी है। जिसके अनुसार उनकी पत्नी मोती बेगम इसमें रहती थीं। पहले बेगम का नाम टाट महल था जिसे नवाब ने बदल दिया था। आसफुद्दौला के बनवाए शीशमहल की स्पर्धा में मोती महल की नींव पड़ी थी। नवाब की कई शादियां बनारस में हो चुकी थीं। उन सब में सआदत अली खां को टाट महल बेहद अजीज थीं। सआदत अली खां ने मोती महल इन्हीं के लिए बनवाया था। मोतीमहल में रहने से पहले टाट महल दौलत सराय में रहती थीं। उन्हें मोती के जेवरों के प्रति विशेष आकर्षण था। इस कारण बेगम के लिए नवाब ने मोतीमहल के गुंबद पर सीप की चमक से मोती की आब पैदा कर दी थी। 1866 में मिस्टर ब्रूस इंजीनियर के नक्शे पर मोती महल बनवाया गया था, जो अब तोड़ा जा चुका है। इस पुल के किनारे के सब घाट मोती महल घाट नाम से मशहूर हैं। इन घाटों के पूरब में एक महल की मरम्मत करवा कर जैकसन साहब बैरिस्टर रहा करते थे। अब उस महल को राजा ओयल ने ले लिया है। इसके सामने की ग्राउंड, मोती महल ग्राउंड कहलाती थी जहां अब स्टेडियम बन चुका है।
मौजूदा समय में स्थिति अब मोती महल में मोतीलाल नेहरू मेमोरियल सोसाइटी, भारत सेवा संस्थान, शिक्षा समिति और उप्र बाल कल्याण परिषद आदि के कार्यालय खुल गए हैं। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रभानु गुप्त की समाधि भी इसी क्षेत्र में बनी है।अंबेडकर पार्क उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर मायावती ने लखनऊ के पॉश इलाके में अंबेडकर पार्क बनवाया था। अम्बेडकर उद्यान लखनऊ में स्थित एक दर्शनीय उद्यान वाला स्मारक है।
यह भीमराव अम्बेडकर की याद में समर्पित है। अंबेडकर पार्क एक सार्वजनिक पार्क है और गोमती नगर, लखनऊ, उत्तर प्रदेश, में स्मारक है। यह अधिक औपचारिक रूप से डॉ. भीमराव अम्बेडकर सामाजिक परिवर्तन प्रांत स्थल के नाम से जाना जाता है और इसे "अम्बेडकर पार्क" के रूप में भी जाना जाता है।
पार्क ज्योतिराव फुले, नारायण गुरू, बिरसा मुंडा, शाहूजी महाराज, भीमराव अम्बेडकर, कांशीराम के जीवन और यादों का सम्मान करते हैं और जिन्होंने मानवता, समानता और सामाजिक न्याय के लिए अपना जीवन समर्पित किया है। यह स्मारक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री मायावती ने अपने प्रशासन के दौरान बनाया था। बहुजन समाज पार्टी के नेतृत्व में।स्मारक की आधार शिला पहली बार 1995 में रखी गई थी। इससे पहले पार्क का नाम डॉ. भीमराव अम्बेडकर उद्यान था। सन् 2007 में पार्क के आगे नवीकरण और विकास किया। इसे शुरू में 14 मार्च 2008 को मुख्यमंत्री मायावती ने जनता के लिए खोल दिया था। पूरे स्मारक राजस्थान से लाए गए। यह पार्क लाल बलुआ पत्थर का उपयोग करके बनाया गया है।
राम मनोहर लोहिया पार्क उत्तर प्रदेश के लखनऊ ज्वालानगर पूर्व में स्थित डॉ राम मनोहर लोहिया पार्क का निर्माण मुख्यमंत्री मायावती के कार्यकाल के दौरान करोड़ों रुपये खर्च कर सपा ने राजधानी में बने डॉ. राम मनोहर लोहिया पार्क को प्रदेश का सबसे खूबसूरत उद्यान बनााया राजधानी में गोमती नगर क्षेत्र में बने लोहिया पार्क का निर्माण कार्य बहुुत ही कुशलता पूर्वक किया गया है। इसे देखने के लिए पूरे देश प्रदेेश से लोग आते हैं। इसमें लगे हरे पेड़ पौधे लखनऊ की सुंदरता मेंंं चार चांद लगाते हैं।
Friday, July 10, 2020
कॉमेडियन जगदीप सूरमा भोपाली की अब तक की सफर!
जगदीप का जन्म 29 मार्च, 1939 को दतिया, मध्य प्रदेश में हुआ था। उनका असली नाम सैयद इश्तियाक अहमद जाफरी है। बॉलीवुड में इन्हें शोले फ़िल्म में प्रसिद्ध हुए किरदार की वजह से सूरमा भोपाली भी कहा जाता है।1975 में आयी फ़िल्म शोले में इन्हें सुरमा भोपाली का किरदार मिला था। जिसने इन्हें खूब प्रसिद्धि दिलाई।
बॉलीवुड के फेमस एक्टर और कॉमेडियन जगदीप का बुधवार, 8 जुलाई को निधन हो गया। बढ़ती उम्र की दिक्कतों के चलते जगदीप ने अपने मुंबई वाले घर में अंतिम सांस ली. वे 81 साल के थे।
मुंबई में उनका अंतिम संस्कार किया गया। जगदीप के बेटे जावेद जाफरी और उनके करीबी जगदीप के अंतिम संस्कार में शामिल हुए. जगदीप का अंतिम संस्कार मुंबई में परिवारवालों और करीबियों की मौजूदगी में किया गया। इन्होंने अपने अभिनय से लाखो दिलों पे राज किया।
इन्होंने 1953 से लेकर 2004 तक 400 से ज्यादा फिल्मों में अभिनय किया ओर लोगों के दिलो पे राज किया। 1953 में फिल्म आई पापी ओर दो बीघा जमीन से लेकर 2004 में फिल्म किस किस कि किस्मत तक 400 से ज्यादा फिल्मों में काम किया। इन सब फिल्मों में से एक फिल्म शोले जिसमें उनका किरदार सूरमा भोपाली का सबसे खास रहा। जो कि लोग आज भी सूरमा भोपाली के नाम से जानते है।
इस सावन ऎसे होगी बाबा अमरनाथ और वैष्णो देवी की यात्रा।
हर साल कि तरह इस साल धार्मिक स्थानों के दर्शन करना उतना आसान नहीं है। इस साल धार्मिक स्थानों पर जाने के लिए बहुत से सावधानियां बरतनी होगी।कोरोना महामारी (COVID-19)के चलते वैसे तो सभी धार्मिक आयोजनों पर रोक लगी हुई है, लेकिन अमरनाथ यात्रा को मंजूरी दी जा रही है। सरकार बहुत कम संख्या में श्रृद्धालुओं को बाबा अमरनाथ (Baba Amarnath) के दर्शन को मंजूरी दे रही है. अभी इस बारे में मंथन चल रहा है. अमरनाथ यात्रा को लेकर अंतिम निर्णय अगले सप्ताह लिया जा रहा है, की कितने श्रद्धालु को एक बार में दर्शन करने दी जा रही है
जम्मू-कश्मीर में स्थित अमरनाथ गुफा मंदिर और वैष्णोदेवी मंदिर में श्रद्धालुओं को दर्शन देने की अनुमति के बारे में एक हाई लेवल कमेटी में विचार-विमर्श किया गया। इस कमेटी में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी, प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह समेत गृह मंत्रालय और जम्मू कश्मीर प्रशासन के आला अधिकारियों ने भाग लिया. चर्चा है कि अमरनाथ यात्रा 21 जुलाई को शुरू हो सकती है। यात्रा को लेकर अंतिम फैसला लिया जाना बाकी है।
बैठक में इस बात पर चर्चा की गई कि इस बार अमरनाथ यात्रा में कोविड-19 के हालात की वजह से एक दिन में 500 से अधिक श्रद्धालुओं को जाने की इजाजत नहीं होगी। पहलगाम मार्ग पर बर्फ होने की वजह से यह रास्ता अभी तक साफ नहीं हो सका है। इसलिए इस साल केवल बालटाल मार्ग से यात्रा हो सकती है।वैष्णोदेवी मंदिर में श्रद्धालुओं के जाने पर 31 जुलाई तक रोक लगाई हुई है। बैठक में इस बात पर चर्चा हुई कि वैष्णोदेवी मंदिर को पहले लोकल लोगों के लिए खोला जाएगा। उसके बाद हालात की समीक्षा की जाएगी फिर दूसरे राज्यों के लोगों को मंदिर जाने की अनुमति दी जाएगी।
Thursday, July 9, 2020
जिसके माथे पर तिलक ना दिखे, उसका सर धड़ से अलग कर दो, पुष्यमित्र शुंग को नमन।
मैं तो इंसानियत से मजबूर था तुम्हे बीच मे नही डुबोया" मगर तुमने मुझे क्यों काट लिया!
नदी में बाढ़ आती है छोटे से टापू में पानी भर जाता है वहां रहने वाला सीधा साधा1चूहा कछुवे से कहता है मित्र "क्या तुम मुझे नदी पार करा ...
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