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Thursday, September 3, 2020

अगर भीष्म पितामह के दिए उपदेश का पालन करें तो जीवन में आने वाले दुखो से बच सकते हैं।

महाभारत युद्ध अधर्म पर धर्म की लड़ाई थी। जो कौरव और पांडवों के बीच हुई थी। जिसमें कौरवों ने हर कदम पर छल और अधर्म का साथ लिया। वहीं, पांडवों ने धर्म के साथ आगे बढ़ते हुए इस युद्ध पर विजय प्राप्त किया।
महाभारत के शांति पर्व में युधिष्ठिर ने भीष्म पितामह से पूछा कि पितामह जीवन में कभी-कभी हमारे सामने ऐसी परिस्थितियां बन जाती हैं, जिसमें हम समझ नहीं पाते हैं कि क्या करें और क्या न करें। कभी-कभी गुरु द्वारा बताए गए ज्ञान के अनुसार कोई काम करना जरूरी होता है, लेकिन उसमें हिंसा होने की वजह से हमें अनुचित लगता है। पितामह, ऐसे अवसर पर हमें वह काम तुरंत करना चाहिए या उसके संबंध में विचार करना चाहिए।

भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को गौतम ऋषि और उनके पुत्र चिरकारी की कथा सुनाई। भीष्म ने कहा कि चिरकारी हर काम हर काम सोच-समझकर देरी से करता था। एक दिन गौतम ऋषि अपनी पत्नी से क्रोधित हो गए और चिरकारी से कहा अपनी मां का वध कर दो। ऐसा बोलकर गौतम ऋषि वहां चले गए। चिरकारी सोचने लगा कि माता का वध करूं या नहीं। माता-पिता के बारे में धर्म के अनुसार विचार करने लगा। बहुत समय तक उसने पिता की आज्ञा का पालन नहीं किया। जब गौतम ऋषि लौटकर आए तो उन्हें दुख हो रहा था कि उन्होंने पत्नी को मारने का आदेश देकर गलती कर दी। जब घर पहुंचे तो उन्होंने देखा कि चिरकारी की माता जीवित थी। ये देखकर गौतम ऋषि प्रसन्न हो गए।
भीष्म ने युधिष्ठिर से कहा कि:-
रागे दर्पे च माने च द्रोहे पापे च कर्मणि।
अप्रिये चैव कर्तव्ये चिरकारी प्रशस्यते।।

ये महाभारत के शांति पर्व के 266वें अध्याय का 70वां श्लोक है। इसमें भीष्म पितामह युधिष्ठिर से कहते हैं कि हमें राग यानी मोह बढ़ाने में, अत्यधिक जोश दिखाने में देरी करना चाहिए। घमंड दिखाने में, लड़ाई करने में, कोई पाप करने में, किसी का बुरा करने में जितनी ज्यादा हो सके, उतनी देरी करनी चाहिए। इस नीति का ध्यान रखने पर हम कई समस्याओं से बच सकते हैं।

पितृ दोष से मुक्ति पाने का सबसे सही समय होता है, "पितृपक्ष" ।

पितृ दोष से मुक्ति पाने का सबसे सही समय होता है पितृपक्ष। इस दौरान किए गए श्राद्ध कर्म और दान-तर्पण से पित्रो को तृप्ति मिलती है। वे खुश होकर अपने वंशजों को सुखी और संपन्न जीवन का आशीर्वाद देते हैं। पितृपक्ष में श्राद्ध कर्म करने की परंपरा हमारी सांस्कृतिक विरासत में सदियों से चली आ रही है। धर्मशास्त्रों में श्राद्धों के विषय में विस्तार से बताया गया है। कहा गया है, कि पितरों का श्राद्ध करने वाले को समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। श्राद्ध के लिए अपराह्न व्यापिनी तिथि ली जाती है। मृतक का अग्नि संस्कार करने वाले दिन श्राद्ध नहीं किया जाता।

धर्मशास्त्रों में कहा गया है कि पितरों के पूजन करने वाले को दीर्घायु, सुयोग्य पुत्र, यश, स्वर्ग, ताकत, लक्ष्मी, गाय आदि पशु सब प्रकार के सुख और धन धान्य की प्राप्ति होती है। प्राचीन भारतीय चिंतन परम्परा के अनु सार मनुष्यों को अपने जीवन में तीन प्रकार के ऋण उतारने होते हैं। ये तीन ऋण हैं। देव ऋण, ऋषि ऋण और पितृ ऋण। ऐसा कहा गया है कि श्राद्ध करने से उपासक के तीनों ऋण उतर जाते हैं। श्राद्धों में बहुत लोगों को इसकी जानकारी नहीं होती है कि किस दिन किसका श्राद्ध करना चाहिए।

धर्मशास्त्रों में स्पष्ट रूप से श्राद्ध के नियम दिए गए हैं। इनके अंतर्गत कहा गया है कि जिस पिता की मृत्यु जिस दिन हुई हो उसी दिन उसका श्राद्ध किया जाना चाहिए। दिन का अर्थ वार से नहीं बल्कि देसी तिथियों प्रथमा, द्वितीया, तृतीया आदि से लिया जाना चाहिए। यदि मृत्यु प्रतिपदा के दिन हुई हो तो उनका श्राद्ध पहले दिन यानी प्रतिपदा पर ही करना चाहिये। लेकिन पिता के श्राद्ध के लिए अष्टमी को और माता के श्राद्ध के लिए नवमी तिथि को श्रेष्ठ माना गया है। श्राद्ध पक्ष के पहले दिन प्रतिपदा के श्राद्ध का विधान है। इस दिन उन्हीं का श्राद्ध ही किया जाता है, जिनकी मृत्यु प्रतिपदा के दिन हुई हो।

परिवार में कुछ ऐसे भी पितर होते हैं जिनकी अकाल या अस्वाभाविक रूप से मृत्यु हो जाती है, ऐसे पितरों का श्राद्ध चतुर्दशी के दिन किया जाता है। जिन पितरों की मृत्यु की तिथि ज्ञात न हो उनका श्राद्ध अमावस के दिन किया जाना चाहिए। श्राद्धों में ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है। श्राद्ध करने के अपने नियम होते हैं। श्राद्ध पक्ष हिंदी कैलेंडर के अश्विन महीने के कृष्ण पक्ष में आता है। जिस तिथि में जिस परिजन की मृत्यु हुई हो, उसी तिथि में उनका श्राद्ध कर्म किया जाता है। श्राद्ध कर्म पूर्ण विश्वास, श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाना चाहिए। पितृों तक केवल हमारा दान ही नहीं बल्कि हमारे भाव भी पहुंचते हैं।

जिन लोगों की मृत्यु के दिन की सही-सही जानकारी न हो, उनका श्राद्ध अमावस्या तिथि को करना चाहिए। सांप काटने से मृत्यु और बीमारी में या अकाल मृत्यु होने पर भी अमावस्या तिथि को श्राद्ध किया जाता है। जिनकी आग से मृत्यु हुई हो या जिनका अंतिम संस्कार न किया जा सका हो, उनका श्राद्ध भी अमावस्या को करते हैं।

Wednesday, September 2, 2020

स्वीडन का खूबसूरत शहर माल्मो पूरी तरह मुस्लिम दंगाइयों ने किया जलाकर राख।

29 August 2020
स्वीडन का खूबसूरत शहरों में से एक माल्मो शहर भी मुस्लिम दंगाइयों से नहीं बच सका। और पूरी तरह जलकर राख हो गया। अब यह दंगा दूसरे शहरों में भी तेजी से फैल रहा है।
दरअसल मुस्लिम समुदाय के एक ग्रुप ने विरोध प्रदर्शन के दौरान बाइबल (क्रिश्चियन धर्म ग्रन्थ) जला दिया था। उसके बाद उसका बदला लेने के लिए कुछ चरमपंथी ईसाईयों ने कुरान (इस्लामिक धर्म ग्रंथ) जलाने का कार्यक्रम रखा और जैसे ही मुसलमानों ने सुना कि कुरान जलाने का कार्यक्रम रखा गया है। उन्होंने पूरे स्वीडन को जलाकर राख करने की तैयारी कर ली हालांकि उनकी तैयारी हर वक्त दुनिया को जलाने की उनकी तैयारी पहले से ही पूरी होती है।
सोचिए मात्र दो दशक पहले पूरे स्वीडन में एक भी मुस्लिम नहीं थे। लेकिन स्वीडन की वामपंथी विचारधारा वाली सरकारों ने सीरिया लेबनान अफगानिस्तान लीबिया तमाम देशों से मुस्लिम शरणार्थियों को अपने यहां बसाया। बिकाऊ लालची सत्ताधारी ने नागरिकता भी छीप छीप कर देता गया। उन्हें सोशल सिक्योरिटी दी गई। उन्हें मुफ्त में खाना रहने का घर सब कुछ दिया गया। और आज उन्ही मुस्लिम शरणार्थियों ने स्वीडन को जलाकर राख कर दिया।
स्वीडन ऐसे तो भारत के हर गतिविधियो पे बहुत ध्यान देता है और समय समय पर अपनी प्रतिक्रिया भी देता आया है। भारत ने जब जम्मू कश्मीर से धारा 370/35A हटाया था तो स्वीडन खुल कर अपनी प्रतिक्रिया दिया था। और मुस्लिम समुदाय को उसकी बहुत चिंता हो रही थी। जबकि भारत के जम्मू कश्मीर राज्य में 80% से ज्यादा मुस्लिम सांती दूत है और स्वीडन में 16 % मुस्लिम सांती हैं। अब स्वीडन को किसी भी देश के आंतरिक मुद्दों पर कोई प्रतिक्रिया नहीं देना चाहिए।

Tuesday, September 1, 2020

जाने सबसे बड़ा भारतीय साम्राज्य विजेता सम्राट अशोक अपने ही देश के इतिहासकारों से कैसे हार गए।

आखिर क्यों संपूर्ण भारत विजेता सम्राट अशोक पूरा भारत विजयी होने के बाद भी उनको अपने ही देश के इतिहासकर इतिहास के पन्नों में हरा दिया। आखरी क्यों और क्या थी राजनीत जिसके कारण भारत विजेता सम्राट अशोक हार गए। आज उनके द्वार दिए गए हर एक चिझ को भारत सरकार से लेकर हर भारतीय जिसे जान कर सुन कर गौरवान्वित होता है।
1. जिस सम्राट के नाम के साथ संसार भर के इतिहासकार “महान” शब्द लगाते हैं।
2. जिस सम्राट का राजचिन्ह अशोकचक्र भारत देश अपने झंडे में लगता है।
3.जिस सम्राट का राजचिन्ह चारमुखी शेर को भारत देश राष्ट्रीय प्रतीक मानकर सरकार चलाती है और सत्यमेव जयते को अपनाया गया।
4. जिस देश में सेना का सबसे बड़ा युद्ध सम्मान सम्राट अशोक के नाम पर अशोक चक्र दिया जाता है।
5. जिस सम्राट से पहले या बाद में कभी कोई ऐसा राजा या सम्राट नहीं हुआ, जिसने अखंड भारत (आज का नेपाल, बांग्लादेश, पूरा भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान) जितने बड़े भूभाग पर एक छत्र राज किया हो।
6. जिस सम्राट के शासनकाल को विश्व के बुद्धिजीवी और इतिहासकार भारतीय इतिहास का सबसे स्वर्णिम काल मानते हैं।
7. जिस सम्राट के शासनकाल में भारत विश्वगुरु था, सोने की चिड़िया था, जनता खुशहाल और भेदभाव रहित थी।
8. जिस सम्राट के शासनकाल जीटी रोड जैसे कई हाई-वे बने, पूरे रोड पर पेड़ लगाये गए, सरायें बनायी गईं, इंसान तो इंसान जानवरों के लिए भी प्रथम बार हॉस्पिटल खोले गए, जानवरों को मारना बंद कर दिया गया।

सम्राट अशोक मगथ के सम्राट थे जिसकी राजधानी पाटलीपुत्र थी। सम्राट मगथ के सम्राट जरूर थे लेकिन कलिंग को छोड़कर संपूर्ण भारतवर्ष पर उनका शासन था। कहते हैं कि ईरान से लेकर बर्मा तक अशोक का साम्राज्य था। अशोक के समय मौर्य राज्य उत्तर में हिन्दुकुश की श्रेणियों से लेकर दक्षिण में गोदावरी नदी के दक्षिण तथा मैसूर, कर्नाटक तक तथा पूर्व में बंगाल से पश्चिम में अफगानिस्तान तक पहुंच गया था। यह उस समय तक का सबसे बड़ा भारतीय साम्राज्य था। ऐसे महान सम्राट अशोक कि जयंती उनके अपने देश भारत में क्यों नहीं मनायी जाती, न ही कोई छुट्टी घोषित कि गई है? अफ़सोस जिन लोगों को ये जयंती मनानी चाहिए, वो लोग अपना इतिहास ही नहीं जानते और जो जानते हैं, वो मानना नहीं चाहते।

अब स्पीड पोस्ट से भी मांगा सकते है माता वैष्णो देवी का प्रसाद।

वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड माता के भक्तों के लिए एक और उपहार लेकर आया है। देशभर के भक्त अब माता वैष्णो देवी का प्रसाद स्पीड पोस्ट के जरिए भी प्राप्त कर सकेंगे। श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी रमेश कुमार और डाक सेवाएं विभाग के निदेशक गौरव श्रीवास्तव ने एक समझौते पर हस्ताक्षर कर सेवा सुरु की गई हैं। इसके तहत डाक विभाग स्पीड पोस्ट के जरिए देश भर में कहीं भी वैष्णो देवी के प्रसाद की डिलीवरी करेगा। बता दें, बोर्ड के अनुसार यह सेवा नो प्रॉफिट नो लॉस पर दी जाएगी। श्राइन बोर्ड ने तीन अलग-अलग श्रेणी का प्रसाद लांच किया है।
कैसे करें ऑर्डर 
माता वैष्णो देवी का प्रसाद मंगाने के लिए श्राइन बोर्ड ने नो प्रोफिट, नो लॉस के आधार पर तीन तरह का प्रसाद लॉन्च किया है। प्रसाद ऑर्डर करने के लिए माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड के वेबसाइट maavaishnodevi.org पर जाकर बुक किया जा सकता है, अथवा इसके लिए मुहैया कराए गए विशेष फोन नंबर 9906019475 पर कॉल किया जा सकता है। यहां पर आपको प्रसाद की कैटेगरी, क्वालिटी और कीमत सभी चीजों की जानकारी मिल जाएगी।

इस बीच 16 अगस्त से शुरू हुई मां वैष्णो देवी की यात्रा रफ्तार पकड़ लिया है। यहां यात्रा के लिए पहुंचने वाले भक्तों के लिए हेलिकॉप्टर, बैटरी से चलने वाला रिक्शा, माता भवन और भैरो मंदिर के बीच रोप वे की सुविधा भी शुरू कर दी गई है। अभी यहां हर रोज 2000 भक्तों को दर्शन करने की इजाजत मिली है।

आज हो रहा है गणपति बप्पा मोरया का विसर्जन जाने कैसे करते हैं

गणेश चतुर्थी यानि गणेश जी के जन्मदिवस से पूरे 10 दिन तक भक्त उत्सव मनाते हैं। चतुर्थी से शुरु होकर अनंत चतुर्दशी के दिन यानी आज गणेश जी का विसर्जन होने जा रहा है। 10 दिन के इस त्योहार में भक्तों को पता ही नहीं चलता कि 10 दिन कब गुजर गए। इस दौरान भक्त गणपति जी को अपने घर में स्थापित करते हैं और पूरे 10 दिन तक उनकी पूजा अर्चना और सेवा करते हैं। समय की कमी के कारण कुछ लोग 1.5 दिन, 3 दिन, 5 दिन या 7 दिन में ही विसर्जन कर देते हैं जबकि गणपति विसर्जन का उपयुक्त समय स्थापना के 11वें दिन होता है।
गणपति जी की विदाई करते समय भक्त काफी भावुक नजर आते हैं। ऐसा प्रतीत होता है जैसे हमारे घर का कोई सदस्य विदा होकर जा रहा हो। गणपति जी की विदाई भी उसी प्रकार भक्तजन करते है। जैसे हम अपने घर के किसी सदस्य की विदाई करते हैं। कहते हैं कि जब गणेश जी को विदा किया जाता है तो उनके साथ कुछ खाने पीने का सामान दे देना चाहिए ताकि उन्हें रास्ते में किसी भी प्रकार कि परेशानी का सामना ना करना पड़े।
गणेश विसर्जन की विधि
रोज की तरह उनकी आरती करते हैं। विशेष प्रसाद का भोग लगाते हैं। गणेश जी के मंत्रों का उच्चारण करते हैं। एक स्वच्छ पाटा लेकर उसे गंगाजल से पवित्र कर फिर घर की स्त्री से उस पर स्वास्तिक बनाते हैं। उस पर अक्षत रखते हैं, एक पीला, लाल या गुलाबी सुसज्जित वस्त्र बिछाते हैं। उसपर फूल चढ़ाते हैं साथ में पाटे के चारों कोनों पर चार सुपारी भी रखते हैं। उसके बाद श्री गणेश भगवान को उनकी स्थापना वाले जगह से उठाकर इस पाटे पर विराजित करते हैं। इसके उपरांत उनके साथ फल, फूल वस्त्र दक्षिणा एवं 5 मोदक रखते हैं। तद पश्चात उन्हें किसी स्वक्ष तालाब में विसर्जित करते हैं।

लेकिन हर साल की तरह इस साल कोरोना महामारी के चलते गणपति जी का विसर्नजन नदी, तालाब या पोखर में नहीं कर पाएंगे। इस बार हमें घर पर ही करना होगा। विसर्जन से पूर्व पुनः आरती सम्पन्न करें। श्री गणेश से खुशी-खुशी विदाई की कामना करें और सबके लिए धन, सुख, शांति, समृद्धि के साथ मनचाहे आशीर्वाद मांगें। साथ ही साथ 10 दिनों में जाने -अनजाने में हुई गलती की क्षमा मांगें फिर गणेश जी की मूर्ति का विसर्जन करें।

अनंत चतुर्दशी के व्रत से होता है, हार मनोकामना पूर्ण। सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र भी रखा था यह व्रत।

भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को अनंत चतुर्दशी का त्योहार मनाया जाता है। इस त्योहार को अनंत चौदस नाम से भी जाना जाता है। इस दिन भगवान श्री हरि विष्णु के अनंत स्वरूप की पूजा की जाती है। मान्यता है कि 14 साल तक लगातार अनंत चतुर्दशी का व्रत रखने से विष्णु लोक की प्राप्ति होती है।
                    "ॐ अनन्ताय नमः"
अनंत चतुर्दशी का व्रत काफी फलदाई साबित होता है। कहा जाता है कि जब पांडव अपने राज्य को हारकर बनवास के लिए निकले तो भगवान श्री कृष्ण के कहने पर उन्होंने यह व्रत रखा। इस व्रत के प्रभाव से पांडव महाभारत का युद्ध भी जीते और अपना राज्य भी वापस पाए।

एक अन्य मान्यता है कि जब सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र अपना सब कुछ दान करने के बाद अपने घर को त्याग दिया था जंगल जंगल भटकने के बाद उन्हें किसी ने अनंत चतुर्दशी का व्रत करने को कहा। इस व्रत के प्रभाव से सत्यवादी हरिचंद को अपना राज्य वापस मिला।
अनंत चतुर्दशी के पावन पर्व पर सृष्टि के पालनहार और विघ्नहर्ता के चरणों में प्रणाम और यही प्रार्थना कि सब सुखी हों, सबका मंगल और कल्याण हो। 

मैं तो इंसानियत से मजबूर था तुम्हे बीच मे नही डुबोया" मगर तुमने मुझे क्यों काट लिया!

नदी में बाढ़ आती है छोटे से टापू में पानी भर जाता है वहां रहने वाला सीधा साधा1चूहा कछुवे  से कहता है मित्र  "क्या तुम मुझे नदी पार करा ...