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Tuesday, June 30, 2020

भारत मां की रक्षा के लिए 5-5 युद्ध लडने वाले परमवीर योद्धा माँ भारती के सपूत #जनरल श्री सैम मानेकशॉ

सैम मानेकशॉ का जन्म 3 अप्रैल 1914 को अमृतसर में एक पारसी परिवार में हुआ था। उनका परिवार गुजरात के शहर वलसाड से पंजाब आ गया था। मानेकशॉ का असली नाम साइरस था। उन्हीं दिनों उस नाम के एक पारसी को किसी जुर्म में जेल हुई थी। उसके बाद उनकी चाची ने उनका नाम मानेकशॉ रख दिया। प्रारंभिक शिक्षा अमृतसर में की, बाद में वे नैनीताल के शेरवुड कॉलेज में दाखिला ली। वे देहरादून के इंडियन मिलिट्री एकेडमी के पहले बैच (1932) के लिए चुने गए 40 छात्रों में से एक थे। वहां से वे कमीशन प्राप्ति के बाद 1934 में भारतीय सेना में भर्ती हुए।


1937 में एक सार्वजनिक समारोह के लिए लाहौर गए सैम की मुलाकात सिल्लो बोडे से हुई। दो साल की यह दोस्ती 22 अप्रैल 1939 को विवाह में बदल गई। 1969 को उन्हें सेनाध्यक्ष बनाया गया और 1973 में फील्ड मार्शल का सम्मान प्रदान किया गया।


17वी इंफेंट्री डिवीजन में तैनात सैम ने पहली बार द्वितीय विश्व युद्ध में जंग का स्वाद चखा 4-12 फ्रंटियर फोर्स रेजिमेंट के कैप्टन के तौर पर बर्मा अभियान के दौरान सेतांग नदी के तट पर जापानियों से लोहा लेते हुए वे गम्भीर रूप से घायल हो गए थे।


स्वस्थ होने पर मानेकशॉ पहले स्टाफ कॉलेज क्वेटा, फिर जनरल स्लिम्स की 14 वीं सेना के 12 फ्रंटियर राइफल फोर्स में लेफ्टिनेंट बनकर बर्मा के जंगलों में एक बार फिर जापानियों से दो-दो हाथ करने पहुँचे गए।, यहाँ वे भीषण लड़ाई में फिर से बुरी तरह घायल हुए, द्वितीय विश्वयुद्ध खत्म होने के बाद सैम को स्टॉफ आफिसर बनाकर जापानियों के आत्मसमर्पण के लिए इंडो-चाइना भेजा गया जहां उन्होंने लगभग 10000 युद्ध बंदियों के पुनर्वास में अपना योगदान दिया।


1946 में वे फर्स्ट ग्रेड स्टॉफ ऑफिसर बनकर मिलिट्री आपरेशंस डायरेक्ट्रेट में सेवारत रहे, भारत के विभाजन के बाद 1947-48 की भारत-पाकिस्तान युद्ध 1947 की लड़ाई में भी उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भारत की आजादी के बाद गोरखों की कमान संभालने वाले वे पहले भारतीय अधिकारी थे। गोरखों ने ही उन्हें सैम बहादुर के नाम से सबसे पहले पुकारना शुरू किया था। तरक्की की सीढ़ियाँ चढ़ते हुए सैम को नागालैंड समस्या को सुलझाने के अविस्मरणीय योगदान के लिए 1968 में पद्मभूषण से नवाजा गया।


7 जून 1969 को सैम मानेकशॉ ने जनरल कुमारमंगलम के बाद भारत के 8 वें चीफ ऑफ द आर्मी स्टाफ का पद ग्रहण किया, उनके इतने सालों के अनुभव के इम्तिहान की घड़ी तब आई जब हजारों शरणार्थियों के जत्थे पूर्वी पाकिस्तान से भारत आने लगे और युद्घ अवश्यंभावी हो गया, दिसम्बर 1971 में यह आशंका सत्य सिद्घ हुई, सैम के युद्घ कौशल के सामने पाकिस्तान की करारी हार हुई तथा बांग्लादेश का निर्माण हुआ, उनके देशप्रेम व देश के प्रति निस्वार्थ सेवा के चलते उन्हें 1972 में।  पद्मविभूषण तथा 1 जनवरी 1973 को फील्ड मार्शल के पद से नवाजा गया। चार दशकों तक देश की सेवा करने के बाद सैम बहादुर 15 जनवरी 1973 को फील्ड मार्शल के पद से सेवानिवृत्त हुए। 1973 में सेना प्रमुख के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद वे वेलिंगटन,   तमिलनाडु में बस गए थे। वद्धावस्था में उन्हें फेफड़े संबंधी बिमारी हो गई थी और वे कोमा में चले गए। उनकी मृत्यु वेलिंगटन के सैन्य अस्पताल के आईसीयू में 27 जून 2008 को रात 12.30 बजे हुई।


सैम मानेक्शॉ बहुत खुले दिल के बहादुर सैनिक थे। मानेकशॉ खुलकर अपनी बात कहने वालों में से थे। उन्होंने एक बार तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को 'मैडम' कहने से इनकार कर दिया था। उन्होंने कहा था कि यह संबोधन 'एक खास वर्ग' के लिए होता है। मानेकशॉ ने कहा कि वह उन्हें प्रधानमंत्री ही कहेगे।


भारतीय सेना के परमवीर योद्धा माँ भारती के सपूत  #जनरल श्री सैम मानेक्शॉ जी को सरकार की तरफ से जो सम्मान मिलना चाहिए ओ सम्मान कांग्रेस सरकार के तरफ से और सम्मान नहीं मिला। हकीकत यह है कि 1971 में जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थी उस समय फिल्ड मार्शल  मानेक्शा आर्मी चीफ थे, इंदिरा गाँधी ने उन्हें पाकिस्तान पर  चढाई करने का आदेश दिया। इसके जवाब में जनरल मानेकशा ने कहा सैनिक तैयार हैे, पर उचित समय पर युद्ध करेंगे। इंदिरा गाँधी ने ताबड़तोड़ चढाई करने का हुकूम दिया। परंतु, उचित समय पर ही सेना ने चढ़ाई करके सिर्फ 13 दिनों में पूर्वी पाकिस्तान को बांगलादेश बना दिया। उचित समय आने पर श्री मानेक्शा इंदिरा गाँधी से बोले..."मै आपके राजकाज में दखल नही देता.. वैसे ही आप भी सैन्य कार्यवाही में दखल मत दीजिये" इस के पश्चात 1971 के बाद से जनरल मानेकशा जी का वेतन का सारे हिस्सा रोक के कुछ थोड़ा हिस्सा दिया जाने लगा। परंतु, माँ भारती के इस सपूत ने कभी भी अपने कटा वेतन की मांग नही की। 25 साल बाद जब वो हॉस्पिटल में थे तब एक दिन तत्कालीन राष्ट्रपति श्री  ए. पी. जे. अब्दुल कलाम, उनसे मिलने गए। उस वक्त बातचीत के बाद राष्ट्रपति श्री ए. पी. जे. अब्दुल कलाम ने अपने देश के लिए 5-5  युद्ध लडने वाले वीर जबज योद्धा को 1971 के बाद से काट के दिया जा रहा वेतन को तत्काल कार्यवाही करके उनकी शेष राशि का भुगतान लगभग 1.3 करोड़ रुपये का चेक भिजवाया।
आज उस महान योद्धा की पुण्यतिथि है,(29/ जून) उन्हें सत् सत् नमन!
जय_हिन्द 🇮🇳
भारत_माता_की_जय !

T-SERIES के मालिक भूषण कुमार की जो गुलशन कुमार के बाद T-SERIES का कार्यभार संभाला

भूषण कुमार (जन्म: 27 नवम्बर 1977) एक हिंदी फिल्म निर्माता व निर्देशक है। वे गुलशन कुमार के पुत्र है। सुपर कैसेट्स इंडस्ट्रीज प्राइवेट लिमिटेड  (Super Cassettes Industries Private Limited ) भारत की एक संगीत कम्पनी है। इसका संगीत बिल्ला टी-सीरीज़ (T-Series) है। यह फ़िल्म निर्माता एवं वितरक कम्पनी भी है। यह मुख्य रूप से  बॉलीवुड  संगीत और भारतीय पॉप संगीत के लिए जानी जाती है। 


2014 तक, टी-सीरीज़ भारत की सबसे बड़ी संगीत कंपनी है, इसकी भारतीय संगीत व्यापार में 35% हिस्सेदारी है, इसके बाद सोनी म्यूजिक इंडिया और ज़ी म्यूजिक है। टी सीरीज़   यूट्यूब पर 130 मिलियन से अधिक सब्सक्राइबर और 96 बिलियन व्यूज़ के साथ, जनवरी 2020 तक सबसे अधिक देखे जाने वाले और सबसे अधिक सब्सक्राइब किए गए चैनल का मालिक है और इसका संचालन करता है। एक संगीत कम्पनी होने के अलावा टी-सीरीज़ को कुछ सफलता एक फ़िल्म निर्माता कम्पनी के तौर पर भी मिली है। मार्च 2020 में टी सीरीज पर 100 बिलियन से अधिक व्यूज हो चुके हैं। यह दुनिया का एकमात्र चैनल बन गया है जो सबसे अधिक बार देखा गया।


 इसकी स्थापना गुलशन कुमार ने की थी। वर्तमान में भूषण कुमार इसका संचालन कर रहे हैं। फ़िल्म निर्माण का कार्य  वर्ष 2001 में फ़िल्म तुम बिन से आरम्भ किया। इसके द्वारा जारी किया गया प्रथम गीत 1984 में लालू राम था जिसका संगीत रवीन्द्र जैन ने दिया था।


बाद में इसने 2009 तक टी-सीरीज़ ब्राण्ड के अधीन उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स गूड्स और ऑडियो-वीडियो सिस्टम का निर्माण भी किया। इसके बाद में इसने मोबाइल फोन हैण्डसेट भी बाजार में उतारे।


All image (Bhushan Kumar Instagram Account)

Monday, June 29, 2020

दिव्या खोसला कुमार: दिल्ली के मिडिल क्लास फैमिली की लड़की यूं बन गई T Series की मालकिन

दिव्या खोसला का जन्म दिल्ली के मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। दिव्या ने जब से होश संभाला तब से वह एक्ट्रेस बनना चाहती थीं। एक्ट्रेस बनने का सपना लिए दिव्या ने कॉलेज की पढ़ाई के बाद मुंबई का रुख कर लिया। दिव्या खोसला ने साल 2004 में लव टुडे नाम की फिल्म से डेब्यू किया। वह फाल्गुनी पाठक के म्यूजिक अल्बम अय्यो रामा में भी नजर आईं। दिव्या की लोकप्रियता बढ़ी तो उन्हें अमिताभ बच्चन, अक्षय कुमार औऱ बॉबी देओल जैसे अभिनेताओं के साथ अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों में काम मिल गया। इस फिल्म ने दिव्या की जिंदगी में एक नया मोड़ लाया।
बताया जाता है कि इसी फिल्म के दौरान दिव्या की मुलाकात फिल्म के प्रोड्यूसर भूषण कुमार से हुई।हालांकि मुलाकात पूरी तरह से व्यवसायिक थी लेकिन पहली नजर में ही भूषण दिव्या पर दिल हार बैठे। इस फिल्म के साल भर बाद ही 13 फरवरी 2005 को भूषण कुमार और दिव्या खोसला ने शादी रचा ली। दोनों की शादी वैष्णो देवी, कटरा में हुई।
भूषण कुमार से शादी के बाद दिव्या करोड़ों की कंपनी टी सीरीज की मालकिन बन गईं। दरअसल 1997 में गुलशन कुमार की मौत के बाद भूषण कुमार ही टी सीरीज के मालिक हैं।

T Series की मालकिन दिव्या खोसला कुमार इन दिनों चर्चा में हैं। दरअसल सोनू निगम द्वारा अपने पति भूषण कुमार पर गंभीर आरोप लगाए जाने से दिव्य़ा उनपर काफी नाराज हैं। एक वीडियो के जरिए दिव्या खोसला ने सोनू निगम पर जवाबी हमला भी बोला है। दिव्या का नाम आज बॉलीवुड की प्रभावशाली महिलाओं में लिया जाता है। आइए जानते हैं दिल्ली के मिडिल क्लास फैमिली की लड़की किस तरह से टी सीरीज जैसी बड़ी कंपनी की मालकिन बन गई।

 (All Photos: Divya Khosla Instagram)

Sunday, June 28, 2020

गुलशन कुमार ने यूं खड़ी की थी करोड़ों की कंपनी T-Series.

गुलशन कुमार का जन्म भारत की राजधानी दिल्ली में 5 मई 1956 को हुआ। आगे चलकर वह उद्योगपति, फिल्म निर्माता बने। इनका परिवार एक पंजाबी हिंदू परिवार था। इनके पिता जी का नाम चंद्रभान दुआ था और इनका नाम गुलशन दुआ था। जो आगे चलकर गुलशन कुमार बना। इनके पिता जी के दिल्ली के दरिया गंज बाजार में एक फल जूस का दुकान था। यह भी वहां पर बैठा करते थे, और यह देखते थे कि व्यवसाय कैसे चलाया जाता है। गुलशन कुमार बचपन से ही भगवान शिव और माता पार्वती के भक्त थे। और संगीत में रुचि रखते थे। अच्छा लगता था संगीत सुनना।
गुलशन कुमार ने आखिर कैसे खड़ी की थी करोड़ों की कंपनी। 
जब 23 साल के हुए तो इन्होंने अपने पिताजी से कहा कि हम एक दुकान करना चाहता हूं और दुकान भी ऐसी जगह जहां रिकॉर्डिंग और ऑडियो कैसेट सस्ते दामों में बिकते हो पिताजी ने हामी भर दी। और तब हुई एक संगीत में सफर की शुरुआत। शुरुआत में उन्होंने दूसरे का कैसेट खरीदते और बेचते थे। थोड़े-थोड़े मुनाफे होने लगे। तत्पश्चात उन्होंने अपनी कंपनी खोलने की सोची। दिल्ली के पास नोएडा में एक म्यूजिक प्रोडक्शन कंपनी खोली जो सुपर कैसेट्स इंडस्ट्रीज लिमिटेड नाम से प्रसिद्ध हुई। गुलशन कुमार सस्ती कैसेट्स और गाने रिकॉर्ड कर बेचा करते थे। दुकान चल पड़ी और यहीं से गुलशन कुमार के करियर ने करवट बदली। कुछ सालों में ही गुलशन कुमार ने  देखते देखते सुपर कैसेट्स इंडस्ट्रीज लिमिटेड भारत में सबसे बड़ी संगीत कंपनी बन गई। इनके कैसेट के काम चल निकला। इनकी ऑडियो कैसेट की बिक्री ज्यादा होने लगी। कारण था सस्ते दामों में कैसेट को हर घर तक पहुंना। यही कारण था के हिंदी संगीत जगत में अच्छे पहचान मिल गई। 
इस दुकान में  इसी कंपनी के तहत गुलशन कुमार ने टी-सीरीज की स्थापना की। 
इनकी कंपनी टी-सीरीज से बना कैसेट उस समय सबसे ज्यादा बिकी जब सोनी और अन्य कैसेटो के दाम काफी महंगे हुआ करते थे। उस समय उनकी तुलना में टी-सीरीज की कैसेट के दाम काफी सस्ती हुआ करती थी। इसलिए हर कोई ब्लेंक कैसेटो भी टी सीरीज का खरीदा था।
टी-सीरीज के लिए गुलशन अपनी आवाज में भक्ति गीत और भजन गाने लगे और इसी की वजह से पॉपुलर होने लगे। इसके बाद गुलशन ने अपने बिजनेस को बढ़ता देख मुंबई का रुख कर लिया।
मुंबई आने के बाद गुलशन की किस्मत बदल गई। उन्होंने तकरीबन 15 से ज्यादा फिल्में प्रोड्यूस कीं जिनमें आशिकी जैसी सुपरहिट फिल्में भी शामिल हैं।

लेकिनन इसी मुंबई ने उन्हें अंडरवर्लड का दुश्मन भी बना दिया। साल 1997 में पैसों के लिए दाऊद इब्राहिम के गुर्गों ने गुलशन कुमार की हत्या कर दी।
23 साल पहले जब गुलशन कुमार की हत्या हुई तो उससे पहले ही वो म्यूजिक की दुनिया के इंटरनेशनल ब्रान्ड बन चुके थे। रिपोर्ट्स की मानें तो टी-सीरीज का बिजनेस 24 से ज्यादा देशों में फैला हुआ है। जिसको उनके बेटे भूषण कुमार संभालते।







Saturday, June 27, 2020

दुनिया के सबसे ज्यादा सैलरी पैकेज पाने वाले भारतीय मूल के सुंदर पिचाई।

आज हम ऎसे होनहार विद्यार्थी की बात कर रहे हैं, जिसने अपने विद्यार्थी जीवन में टीवी नहीं देखी। नए कपड़े नहीं खरीदे। कही  किताबो से समझौता न करना पड़े। आज दुनिया के सबसे ज्यादा सैलरी पैकेज पाने वाले CEO चेन्नई का यह लड़का आज किसी परिचय का मोहताज नहीं है। उसके जीवन में अगर परिवार के बाद कोई था, तो वह है किताबें। जिसको वाह बहुत ईमानदारी से पढा और समझा आज वह दुनिया का सबसे ज्यादा सैलरी पाने वाला गूगल का सीईओ है। उनके पिता नौकरी जरूर करते थे लेकिन दो कमरे की फ्लेट में टीवी नहीं था। तो उन्होंने कभी टीवी नहीं देखी। कार नहीं था तो कभी कार में नहीं बैठे। लेकिन आज ओ समय आ गया चेन्नई का यह लड़का दुनिया का सबसे ज़्यादा सैलरी पाने वालों में एक है। हम बात कर रहे है गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई की। सुंदर पिचाई की सैलरी की बात करें तो 2019 में 28.1 करोड़ डॉलर 2144.53 करोड़़ रुपए सैलरी के रूप में मिली।

पिचाई सुंदराजन (जन्म 10 जून, 1972) भारतीय मूल के अमेरिकी व्यवसायी और अल्फाबेट कंपनी के सीईओ और उसकी सहायक कंपनी गूगल एलएलसी के सीईओ हैं। गूगल ने अपनी कंपनी का नाम अल्फ़ाबेट में बदल दिया। इसके बाद लेरी पेज ने गूगल खोज नामक कंपनी का सीईओ सुंदर पिचाई को बना दिया और स्वयं अल्फाबेट कंपनी के सीईओ बन गए। सुन्दर पिचाई  ने गूगल सीईओ का पद ग्रहण 2 अक्टूबर, 2015 को किया। 3 दिसंबर, 2019 को वह अल्फाबेट के सीईओ बन गए।

पिचाई का जन्म मदुरै, तमिलनाडु, भारत मे  तमिल परिवार में लक्ष्मी और रघुनाथ पिचाई के घर हुआ। उनकी मां लक्ष्मी एक स्टेनोग्राफर थीं और ,उनके पिता रघुनाथ पिचाई ब्रिटिश समूह के जीईसी में एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर थे। सुंदर के पिता का मैन्युफैक्चरिंग प्लांट था। जहा इलेक्ट्रिक कॉम्पोनेंट बनाए जाते थे। सुन्दर ने जवाहर नवोदय विद्यालय, अशोक नगर, चेन्नई में अपनी दसवीं कक्षा पूरी की और वना वाणी स्कूल, चेन्नई में स्थित स्कूल से बारहवीं कक्षा पूरी की। पिचाई ने मेटलर्जिकल इंजीनियरिंग में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, खड़गपुर से अपनी बैचलर डिग्री अर्जित की। उन्होने एम. एस. सामग्री विज्ञान में स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय और इंजीनियरिंग और पेनसिल्वेनिया विश्वविद्यालय के व्हार्टन स्कूल से एमबीए किया जहां उन्हे एक विद्वान साइबेल और पामर विद्वान नामित किया गया।

वह 2004 में गूगल में आए। जहाँ वे गूगल के उत्पाद जिसमें गूगल क्रोम, क्रोम ओएस शामिल है। शुरुआत में वह गूगल के सर्च बार पर छोटी टीम के साथ काम करते रहे। इसके बाद उन्होंने गूगल के कई और प्रोडक्ट पर भी काम किया है। उन्होंने जीमेल और गूगल मैप्स जैसे अन्य अनुप्रयोगों के विकास की देखरेख की। इसके बाद वह गूगल ड्राइव परियोजना का हिस्सा बने। इसके बाद वह अन्य उत्पाद जैसे जीमेल और गूगल मानचित्र, आदि का हिस्सा बने। इसके बाद वह 19 नवम्बर 2009 में क्रोम ओएस और क्रोमबूक आदि के जाँच कर दिखाये।वह इसे 2011 में सार्वजनिक किया। 20 मई 2010 को वह वीपी8 को मुक्तस्रोत के रूप में बताया। इसके बाद वह एक नई वीडियो प्रारूप वेबएम के बारे में भी बताया।

यह 13 मार्च 2013 को एंडरोइड के परियोजना से जुड़े। जिसे पहले एंडी रूबिन संभालते थे। यह अप्रैल 2011 से 30 जुलाई 2013 तक जीवा सॉफ्टवेयर के निर्देशक बने थे। Google के CEO सुंदर पिचाई को किसी परिचय की आवश्यकता नहीं है। उनकी सफलता की कहानी कई लोगों के लिए प्रेरणा है। चेन्नई में एक साधारण जीवन जीने से लेकर अपने देश को गौरवान्वित करने तक, वह लोगों से लेकर धन-दौलत तक का एक अच्छा उदाहरण है। हम सभी उसकी सफलता के बारे में जानते हैं, लेकिन उस महिला के बारे में नहीं जानते, जो उनकी तरफ से खड़ी थी और हमेशा उसका समर्थन करती थी। जी हां, हम बात कर रहे हैं उनकी पत्नी अंजलि पिचाई की। उनकी प्रेम कहानी भी उन्हीं की तरह प्यारी और सरल थी। सुंदर एक मध्यम वर्गीय परिवार से थे। वह चेन्नई में रहते थे और एक साधारण जीवन जीते थे, सुंदर इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (IIT), खड़कपुर से मेटलर्जिकल इंजीनियरिंग (धातुकर्म इंजीनियरिंग) की पढ़ाई कर रहे थे और वहां उनकी मुलाकात अंजलि से हुई। वे दोनों सहपाठी थे। वे अच्छे दोस्त बन गए और दोनों ने शादी कर ली। अंजलि से सुन्दर को दो बच्चे है, काव्या और किरण है। 

सुंदर पिचाई के दरिया दिल ओ हमेशा अपने देश पर आई विपत्ति केे समय खड़े रहतें है। अभी हाल ही में आयी देेश पर वीपत्ती में देश की मदद हाल ही में 5 करोड़ रुपए भारतीय प्रवासी मजदूरों के लिए दान दिए थे।

जन्म पिचाई सुंदर राजन
12 जुलाई 1972 (आयु 47)
मदुरै, तमिलनाडु, भारत
राष्ट्रीयताभारतीय मूल के अमेरिकी
शिक्षा

आईआईटी खड़गपुर (B.Tech. ) स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय (एम एस)

पेन्सिलवेनिया विश्वविद्यालय (एमबीए
व्यवसायगूगल के सी.ई.ओ और अल्फाबेट कंपनी के सीईओ
नियोक्तागूगल खोज
जीवनसाथीअंजलि पिचाई

Thursday, June 25, 2020

करोड़ों की मालकिन हैं सुमोना चक्रवर्ती, जानें- हर एपिसोड से कितना कमाती हैं

आज हम बात कर रहे है, देश के सबसे पसंदीदा टीवी शो में से एक है, ‘द कपिल शर्मा शो’ के  सुमोना चक्रवर्ती, की जो शो में कपिल शर्मा की पत्नी के रूप में लोगों का मनोरंजन करती हैं। निश्चित रूप से कपिल शर्मा शो के कपिल और उनकी टीम के बाकी लोगों को शो के लिए अच्छा पैसा मिलता है। सुमोना इस शो में सरला गुलाटी का रोल निभा रही हैं। सुमोना अपने करियर की शुरुआत एक चाइल्ड एक्टर के रूप में की थी। इसके बाद उन्होंने कई सीरियल्स और शोज में भी काम किया। सुमोना कपिल शर्मा शो के एक एपिसोड के लाखों रुपए चार्ज करती हैं। आइए जानते हैं सरला यानि सुमोना चक्रवर्ती की लाइफ से जुड़ी दिलचस्प बातें-
सुमोना ने चाइल्ड एक्टर के रूप में भी किया है काम: मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, सुमोना ने अपने करियर की शुरुआत 1999 में बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट आमिर खान और मनीषा कोइराला की फिल्म ‘मन’ से की थी। उस वक्त सुमोना सिर्फ 10 साल की थी। इसके बाद कुछ सालों तक सुमोना टीवी पर कुछ छोटे-छोटे शो करती रहीं। लेकिन फिर उनको करियर का एक बड़ा ब्रेक मिला। साल 2011 में शुरू हुए एकता कपूर के सीरियल ‘बड़े अच्छे लगते हैं’ में सुमोना ने नताशा का रोल किया है जिससे उन्हें बहुत अच्छाा पहचान मिला।


कपिल शर्मा शो से मिली एक अलग पहचान: रिपोर्ट्स के अनुसार, सुमोना को 2013 में उनका दूसरा बड़ा ब्रेक मिला। ‘कॉमेडी नाइट्स विद कपिल शर्मा’ में सुमोना ने मंजू शर्मा यानि कपिल शर्मा की पत्नी को रोल किया था। इस रोल से उन्हें एक अलग पहचान मिली। सुमोना फिलहाल द कपिल शर्मा शो में सरला गुलाटी का किरदार निभा  रही हैं।
सुमोना एक एपिसोड का कितना करती हैं चार्ज: मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, सुमोना को ‘द कपिल शर्मा शो’ के हर एपिसोड के लिए करीब 6 से 7 लाख रुपये फीस मिलती है। बता दें कि सुमोना को गाड़ियों का बेहद शौक है। इस वजह से उनके पास फेरारी है जिसकी कीमत करीबन 3 करोड़ रुपए है। इसके अलावा उनके पास Hyundai की भी एक कार है जिसकी कीमत करीबन 27 लाख रुपए है।
आज जीती है बहुत संदार ज़िन्दगी
अधिक जानकारी के लिए आप उनकी Instagram Page पे जा सकते हैं ।
https://instagram.com/sumonachakravarti?igshid=ueezyjc3ba5o

Tuesday, June 23, 2020

भगवान जग्गनाथ की अद्भुत चमत्कार जिससे वैज्ञानिक भी है, हैरान!

आज हम बात कर रहे है, हिन्दुओं के चारो धाम में से एक जगन्नाथ धाम की जो अपने अदभुत कलाकृतियां और भव्यता के लिए विश्व भर में मशहूर है। यहां हिंदू , सीख, बौद्ध और जैन धर्म के लोगो को मंदिर में प्रवेश का इजाजत है। जगन्नाथ धाम की कलाकृतियां और भव्यता को नस्ट करने के इरादे से यहां गैर हिंदू आक्रमणकारियो ने 17 बार आक्रमण कीया। लेकिन भगवान जगन्नाथ की मूर्तियों की हानी नहीं पहुंचा सके। वहां उपस्थित पुजारियों और गांव के लोगों के द्वारा जगन्नाथ भगवान को बचा लिया गया।

भगवान जगन्नाथ की मंदिर
भगवान जगन्नाथ की मंदिर
ओडिशा राज्य के पूरी तट पर स्थित है इस मंदिर में भगवान जगन्नाथ के साथ-साथ भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की मूर्तियां विराजमान है। आज हम बात कर रहे हैं रोचक तथ्य की जिससे वैज्ञानिक भी हैरान है। और कुछ पता नहीं लगा सके ना जाने सातवीं सदी में कौन से टेक्नोलॉजी और कंक्रीट का इस्तेमाल करके यह भव्य और सुंदर मंदिर बनाई गई है। आइए जानते हैं रोचक तथ्य।
रोचक तथ्य

भगवान जगन्नाथ के रहस्य और चमत्कार जो वैज्ञानिकों के लिए पहेली बना हुआ है

विशालकाय गुंबद वैज्ञानिकों के लिए पहेली और करोड़ों लोगों के लिए आस्था का विषय बना हुआ है। जिसमें असीम रहस्य को समेटा हुआ है। भगवान जगन्नाथ अतीत के साथ गहरे राज का केंद्र है। भगवान जगन्नाथ की भव्य मंदिर का गुम्बद पर लगा ध्वज कहानी बताते हैं । ऐसी कहानी जिस पर विश्वास करना मुश्किल है। यहां से उठती आवाजें और समुद्र की लहरों की गड़गड़ाहट में भी अविश्वसनीय रहस्य छुपा हुआ है। और भगवान जगन्नाथ की यात्रा धरती पर उमड़ने वाला सबसे बड़ा जनसैलाब माना जाता है। आइए जानते हैं, आखिर इसका राज क्या है।
पहला राज हवा के विपरीत दिशा में लहराता ध्वज भगवान जगन्नाथ मंदिर के गुंबद पर लगा ध्वज हवा के विपरीत दिशा लहराता है। यदि हवा पूर्व से पश्चिम की ओर चलती है तो गुंबद पर लगा ध्वज पश्चिचिम से पूर्व की ओर लहराता है। हर रोज ध्वज को उल्टा चढ़ाकर बांधा जाताा है ताकि ऐसा लगे कि ये सीधी दिशा में लहरा रहा है। ध्वज पर शिव का चंद्र बना हुआ है।

दूसरा राज गुंबद कार छाया नहीं बनता
यह दुनिया का सबसे भव्य एवं ऊंचा मंदिर है 4 लाख वर्ग फुट में फैला हुआ है। और इसकी ऊंचाई लगभग 214 फुट है। मंदिर के पास खड़े रह कर इस गुंबद को देख पाना असंभव है। और इसके छाया में छुपा है एक गहरा राज क्योंकि इस गुंबद का छाया दिन के किसी भी समय नहीं बनती। पूरी के इस मंदिर को सातवीं सदी में बनाया गया था।


तीराज चमत्कारी सुदर्शन चक्र
इस मंदिर के ऊपर लगे सुदर्शन चक्र को देखने पर लगता है कि यह सुदर्शन चक्र हमारे सामने ही है। यानी यह हमेशा सामने दिखाई देता है। इसे नील चक्र भी कहते हैं।यह अष्ट धातु से बना है। और बेहद पवित्र माना जाता है।

चौथा राज हवा के दिशा
आम दिनों में यहां हवा समुद्र से जमीन की ओर चलती है लेकिन यहां उसका उल्टा होता है। यहां पर लहरें जमीन से समुद्र की ओर चलती हुई देखी जा सकती है।


पांचवा राज गुंबद के ऊपर नहीं उड़ते पक्षी
भगवान जगन्नाथ मंदिर के ऊपर से आज तक किसी पक्षी को उड़ते हुए नहीं देखा गया और इसके ऊपर से कोई विमान भी नहीं उड़ा। अक्सर अन्य मंदिरों के आसपास या गुम्मद पे पंछी उड़ते हुए या बैठे हुए देखे जा सकते हैं लेकिन जगन्नाथ मंदिर के साथ ऐसा नहीं होता।

छठा राज दुनिया का सबसे बड़ा रसोईघर
अगर दुनिया की सबसे बड़ी रसोई घर की बात करें तो यह भगवान जगन्नाथ मंदिर में है यहां 500 रसोईया 300 सहयोगी यों के साथ प्रसाद बनाते हैं। भगवान जगन्नाथ का प्रसाद लगभग 20 लाख भक्त ग्रहण कर सकते हैं यहां प्रसाद बनाने के लिए सात बर्तन को एक के ऊपर एक करके रखा जाता है सबसे ऊपर रखा भोजन पहले पता है तदुपरांत उसके नीचे का उसके बाद उसके नीचे का सबसे आखरी में सबसे नीचे रखे बर्तन का भोजन पकता है। यह सब भोजन लकड़ी से पकये जाते है। यहां पर साल भर प्रसाद बनाने के लिए राशन और लकड़ी उपलब्ध रहता है।

सातवा राज समुद्र की आवाज
मंदिर के द्वार पर कदम रखते हैं समुद्र की गड़गड़ाहट नहीं सुनाई देती है। मंदिर के पास स्वर्गद्वार है वहां पर लाशों की जलाने की गंध तक नहीं आती। मंदिर से बाहर आते ही समुद्र की गड़गड़ाहट की आवाज सुनाई देने लगता है। और लाशे जलाने की गंध महसूस होने लगती है।

आठवां राज रूप बदलती मूर्तियां
यहां भगवान श्री कृष्ण को जगन्नाथ कहा जाता है यहां पर भगवान जगन्नाथ के साथ भाई बलराम और बहन सुभद्रा की काठ में विराजमान है। यहां पर हर 12 साल में नयी प्रतिमा तैयार होती है। मूर्तियां नई जरूर बनाई जाती है लेकिन भगवान का आकार व रूप वही रहता है।


नौवा राज दुनिया की सबसे बड़ी रथ यात्रा
जब भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकलती है तो वह दुनिया की सबसे बड़ी रथ यात्रा होती है। यह रथ यात्रा 5 किलोमीटर लंबी होती है इसने उमड़ता जनसैलाब देखकर अनुमान लगाया जा सकता है।
 
दसवा राज हनुमान बने रक्षक 
ऐसा मानना है कि भगवान जगन्नाथ की मंदिर को समुद्र ने तीन बार तोड़ दिया था। जिसके बाद महाप्रभु भगवान जगन्नाथ ने हनुमान जी को समुद्र को नियंत्रित करने के लिए तैयार किया था। लेकिन प्रभु के दर्शन के लिए हनुमान जी भी नगर को चले जाते थे उनके पीछे पीछे समुद्र भी नगर में प्रवेश कर जाता था। तो भगवान ने हनुमान जी को स्वर्ण बेरी में स्थापित कर दिया था। वहां पर आज भी हनुमान जी की प्राचीन मंदिर है।


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Monday, June 22, 2020

अक्साई चीन पे चीन का अवैध कब्जा पूर्व प्रधानमंत्री जवाहलाल नेहरू की देन।

प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की देन अक्साई चीन का विवाद प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का चीन केे प्रति दोस्ती। अगर प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू जल सेना, थल सेना और वायु सेना के प्रमुखों से बातचीत करके रणनीति से 1962 का युद्ध हुआ होता तो आज यह दिन नहीं देखना पड़ता। कुछ लोगों का मानना है कि अगर प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू तीनोंंं सेनाओं के प्रमुख से बातचीत करना उचित नहीं समझा बिना रणनीति से युद्ध हुआ जिसका नतीजा यह हुआ की हमारे काफी जवान शहीद हो गए और हम वह युद्ध हार गए। आज अक्साई चीन भारत का हिस्स होता और हमारे कोई जवान शहीद नहीं होते। आज जो सैनिक शहीद हो रहे हैं वह उस समय की सरकार का एक समझौता है जिसकी वजह से आज हमें यह दिन देखने पढ़ रहे हैं।
अक्साई चीन के विवाद का जड़ अक्साई चीन के पास चीन द्वारा निर्मित सड़क और पुल है। सड़क बनने के बाद चीन ने अक्साई चीन को अपनाने के लिए बहुत सारे कोशिश किए जोकि भारतीय सेना ने उसके कोशिशों को नाकाम कर दिया। चीन के सड़क निर्माण के बाद भारत ने भी अपनेेेे सीमा के नजदीक सड़क निर्माण कार्य शुरू कर दिया जिससे बौखलाया चीन ने युद्ध की स्थिति बना दी। आज केेे समय में अक्साई चीन के पास भारत चीन सीमा पर बहुत गंभीर स्थिति बनी हुई है।
अक्साई चीन की भौगोलिक स्थिति भारत और चीन के बीच राष्ट्रीय सीमा विवाद के कारण आए दिन अक्साई चीन में भारत चीन सीमा पे तनाव बना रहता है। 1865 में विलियम जॉनसन ने जॉनसन लाइन के द्वारा अक्साई चीन को जम्मू कश्मीर का हिस्सा बताया। उसको चीन ना मानतेे हुए 1899 में एक ब्रिटिश सर्वेयर केे मर्केंेन मैकनाल्ड लाइन के द्वारा अक्साई चीन को चीन का  झिनझियांग स्वायत्त क्षेत्र में होटन काऊंटी का हिस्सा बताया। अक्साई चीन तिब्बत का पठार का दक्षिण पश्चिमी विस्तार है। अक्साई चीन में बंजर ऊंचे अलग-थलग ज्यादातर निर्जल मैदान है। जोकि काराकोरम रेल से पश्चिम और दक्षिण पश्चिम की ओर और कुंडल लूम पर्वत से उत्तर और उत्तर पूर्व में स्थित है। भारत का दावा है की अक्साई चीन चीन कब्जेे वाला हिस्सा भारत के जम्मू और कश्मीर राज्य लद्दाख क्षेत्र का हिस्सा हैं।
अक्साई चीन क्षेत्र क्या है समुद्र तल सेे लगभग 5000 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थित साल्ट फ्लैट्स का एक विशाल रेगिस्ताान है। इसका क्षेत्रफल लगभग 37244 वर्ग किलोमीटर जम्मू और कश्मीर राज्य के उत्तर पूर्वी हिस्से का बड़ा क्षेत्र 1950 से चीनी कब्जे में रहा। चीन ने प्रशासनिक रूूप से शिंजियांग प्रांत के कारगीलेक जीले का हिस्सा बना दिया। अक्साई चीन क्षेत्र में जलवायु ठंडी और शुष्क रहती है जुलाई और अगस्त के महीनों में यहां बारिश होती है।
अक्साई चीन का इतिहास अक्साई चीन का मुद्दा भारत और चीन के बीच सन 1950 से ही लड़ाई की जड़ बना हुआ है। इस क्षेत्र में सीमा विभाजन स्पष्ट्ट रुप से नहीं हुआ था। इसलिए भारत के सैनिक भी 1955 तक गोष्ट लगातेे थे। और चीनी इसका विरोध करते थे 1957 में चीन ने इस इलाके से गुजरती हुई सड़क बनाई जो तिब्बत और झेनजियांग को जोड़ती है। इस सड़क को बनाते चीन ने अक्साई चीन के हिस्से को अपने नक्शे में दिखा दिया। जिसका भारत ने विरोध किया था और इसी विवाद के कारण भारत और चीन केे बीच 1962 का युद्ध हुआ अक्साई चीन के मुद्दे पर भारत और चीन केे बीच संक्षिप्त युद्ध भी लड़ा गया था। लेकिन 1993 और 1996 मेंं दोनों देशों ने वास्तविक नियंत्रण रेखा का सम्मान करने केे लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किया। युद्ध के समापन पर चीन ने अक्साई चीन पर लगभग 38000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र का नियंत्रण रेखा बनाए रखा तभी से ये क्षेत्र अब तक दोनोंं देशों के बीच विवााद का विषय बना हुआ हैं।
अक्साई चीन क्षेत्र में वर्तमान स्थिति अक्साई चीन जम्मूूूू और कश्मीर के कुल क्षेत्र का 15 प्रतिशत हिस्सा है। जिस पर चीन का अवैध कब्जा है। भारत का कहना है अक्साई चीन सहित पूरा जम्मू और कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। जबकि चीन ने ऐसा दावा किया है की अक्साई चीन शिंजियांग उइधुर स्वायत्त क्षेत्र चीन का हिस्सा है। भारत जहां तक एक तरफ दावा करता है कि चीन ने उसके 38000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल को कब्जा लिया है वही चीन का दावा है कि भारत ने अरुणाचल प्रदेश में चीन के 90000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल पर कब्जा किया हुुआ है। इस प्रकार स्पष्ट है कि भारत और चीन के बीच सीमा विवाद एक जटिल मुद्दा है। और यह आसानी से सुलझने वाला नहीं है।

Sunday, June 21, 2020

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक पूजनीय आद्य सरसंघचालक डॉ केशव बलिराम हेडगेवार जी की पुण्यतिथि पे नमन!!

राष्ट्रनिर्माण को समर्पित,विश्व के विशालतम संगठन का बीज बोने वाले, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक पूजनीय आद्य सरसंघचालक डॉ केशव बलिराम हेडगेवार जी की पुण्यतिथि पर हम बात करेंगे उनके द्वारा स्थापित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की जो हिंदू राष्ट्र के मंत्र दृष्टा डॉ हेडगेवार का जन्म चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन 1 अप्रैल 1889 को नागपुर में हुआ था।
बचपन से वह क्रांतिकारी स्वभाव के थे। मराठा शासकों द्वारा निर्मित सीताबर्डी के किले पर फहराता हुए यूनियन जैक को उतारने की योजना बनाई। हालांकि इसमें वह सफल नहीं हुए। नील सिटी हाई स्कूल में अंग्रेजों के अधिकारी निरीक्षण के लिए आने पर वंदे मातरम के उद्घोष से उनका स्वागत किया। परिणाम यह हुआ कि उन्हें विद्यालय से निष्कासित कर दिया गया। बालक केशव ने कहा कि वंदे मातरम और भारत माता की जय बोलना यदि अपराध है तो मैं उसके लिए कोई भी सजा भुगतने को तैयार हूं। कोलकाता मेडिकल कॉलेज से डॉक्टरी की पढ़ाई पूरी की। पढ़ाई के दौरान क्रांतिकारी संस्था अनुशीलन समिति में कार्य किया। 1921 के असहयोग आंदोलन में 1 साल के लिए जेल  गए। 
डॉ हेडगेवार ने विचार किया कि  बिना हिंदू संगठन के भारत का उत्थान संभव नहीं है। इसलिए सन 1925 में विजयदशमी के दिन उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की। 21 जुलाई 1930 को यवतमाल में अपने जत्थे के साथ डॉक्टर हेडगेवार ने जंगल सत्याग्रह किया। नौ मास की कारावास की सजा उन्होंने अकोला जेल में रहकर पूरी की। 
कारावास से बाहर आकर संपूर्ण देश में संघ कार्य विस्तार के लिए उन्होंने नागपुर से प्रचारक भेजे। एक और संघ का कार्य समाज में निरंतर बढ़ रहा था।
 तो दूसरी ओर डॉ हेडगेवार का शरीर धीरे-धीरे शिथिल होता जा रहा था। 21 जून 1940 को संघ संस्थापक डॉक्टर हेडगेवार का निधन हो गया। महात्मा गांधी, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, महामना पंडित मदन मोहन मालवीय, वीर सावरकर, डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ऐसी महान विभूतियां डॉक्टर हेडगेवार से प्रभावित थी। आज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ विश्व का सबसे बड़ा सांस्कृतिक और सेवाभावी संगठन बन गया है।

मैं तो इंसानियत से मजबूर था तुम्हे बीच मे नही डुबोया" मगर तुमने मुझे क्यों काट लिया!

नदी में बाढ़ आती है छोटे से टापू में पानी भर जाता है वहां रहने वाला सीधा साधा1चूहा कछुवे  से कहता है मित्र  "क्या तुम मुझे नदी पार करा ...